कालसर्प दोष पूजा: महत्त्व, लाभ और विधि
कालसर्प दोष हिंदू ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण दोष माना जाता है, जो तब उत्पन्न होता है जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं। यह दोष जीवन में बाधाएँ, आर्थिक समस्याएँ, स्वास्थ्य संबंधी कष्ट और मानसिक अशांति का कारण बन सकता है। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए कालसर्प पूजा की जाती है।

कालसर्प दोष के प्रकार
कालसर्प दोष के 12 प्रकार होते हैं, जिनमें अनंत, कुलिक, वासुकी, शंखपाल, पद्म, महापद्म, तक्षक, कर्कोटक, शंखनाद, घातक, विषधर और शेषनाग कालसर्प दोष शामिल हैं। हर प्रकार के दोष का अलग प्रभाव होता है।
कालसर्प पूजा का महत्त्व
कालसर्प पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में शांति आती है, बाधाओं से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि बढ़ती है। यह पूजा विशेष रूप से नाग पंचमी, श्रावण मास, महाशिवरात्रि और ग्रहण के समय की जाती है।
कालसर्प पूजा विधि
- स्थान चयन: यह पूजा उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर (नासिक), और प्रयागराज जैसे पवित्र स्थानों पर करना शुभ माना जाता है।
- स्नान और संकल्प: पूजा से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और संकल्प लें।
- भगवान शिव का पूजन: शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र चढ़ाएँ।
- नाग देवता की पूजा: नाग देवता की मूर्ति या चित्र की पूजा करें और दूध अर्पित करें।
- मंत्र जाप: राहु और केतु के मंत्रों का जाप करें और महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण करें।
- दक्षिणा और दान: पूजा के अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराएँ और दान दें।
कालसर्प दोष निवारण के अन्य उपाय
- भगवान शिव की आराधना करें और रुद्राभिषेक करवाएँ।
- नियमित रूप से महामृत्युंजय मंत्र और राहु-केतु मंत्र का जाप करें।
- हर सोमवार शिवलिंग पर जल चढ़ाएँ।
- नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करें।
- जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करें।
निष्कर्ष
कालसर्प दोष से प्रभावित व्यक्ति को घबराने की आवश्यकता नहीं है। सही पूजा विधि और उपायों को अपनाकर इस दोष के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है। श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।